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बेगूसराय को क्यों कहा जाता है 'पूरब का लेनिनग्राद'?

बेगूसराय को वामपंथियों का गढ़ बनाने में कॉमरेड चंद्रशेखर की भूमिका काफी महत्वपूर्ण थी. चंद्रशेखर सिंह बिहार के शोषित-पीड़ित लोगों की आवाज थे. चंद्रशेखर सिंह की खासियत यह थी कि वो अपने ओजपूर्ण भाषण के जरिए आम लोगों के साथ जुड़ जाते थे.

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बेगूसराय को क्यों कहा जाता है लेनिनग्राद?
बेगूसराय को क्यों कहा जाता है लेनिनग्राद?
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बेगूसराय जिले को कहा जाता था पूरब का लेनिनग्राद
  • चंद्रशेखर ने बेगूसराय में किया वामपंथ का झंडा बुलंद
  • बेगूसराय में भूमिहारों की लड़ाई भूमिहार से

बिहार के बेगूसराय जिले को कभी 'पूरब का लेनिनग्राद' कहा जाता था. 'लेनिनग्राद' यानी लेनिन का शहर. उनकी विचारधारा वाला शहर. 'लेनिनग्राद' का कॉनसेप्ट रूस  के शहर सेंट पीटर्सबर्ग से लिया गया था. एक जमाने में  क्रांतिकारी लेनिन के विचारों से प्रभावित होकर वहां की कम्युनिस्ट सरकार ने सेंट पीटर्सबर्ग का नाम बदलकर 'लेनिनग्राद' कर दिया था. हालांकि बाद में सोवियत संघ के बिखरने के बाद लेनिनग्राद का नाम बदलकर फिर से सेंट पीटर्सबर्ग कर दिया गया. बेगूसराय में कॉमरेड चंद्रशेखर ने लेनिन के विचारों को जीवंत किया था. बाद के समय में उनके विचारों का ऐसा प्रभाव पड़ा कि बेगूसराय को ही 'लेनिनग्राद' बुलाया जाने लगा. 

खास बात यह है कि बेगूसराय में वामपंथ का झंडा बुलंद करने वाले ऊंची जाति के भूमिहार थे और इनकी लड़ाई भी भूमिहार समुदाय से ही थी. वामपंथी भूमिहारों ने 'जमींदार' भूमिहारों के खिलाफ मोर्चा खोला था. धीरे-धीरे तेघड़ा और बछवारा विधानसभा सीटें वामपंथ का गढ़ बन गईं. तेघड़ा विधानसभा सीट को एक जमाने में 'छोटा मॉस्को' के नाम से जाना जाता था. यही वजह थी कि यहां पर 1962 से लेकर 2010 तक वामपंथियों का ही कब्जा रहा. साल 2010 में बीजेपी के ललन कुंवर ने यहां जीत दर्ज की थी.

बेगूसराय को वामपंथियों का गढ़ बनाने में कॉमरेड चंद्रशेखर की भूमिका काफी महत्वपूर्ण थी. चंद्रशेखर सिंह बिहार के शोषित-पीड़ित लोगों की आवाज थे. चंद्रशेखर सिंह की खासियत यह थी कि वो अपने ओजपूर्ण भाषण के जरिए आम लोगों के साथ जुड़ जाते थे. उन दिनों बिहार में कम्युनिस्ट पार्टी का कोई भी राजनीतिक अभियान रहा हो अगुवा कॉमरेड चंद्रशेखर ही होते थे. वह किसान, गरीब, शोषित, नौजवान, शिक्षक, कर्मचारी और छात्र सभी की आवाज बने. 

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चंद्रशेखर सिंह का जन्म तत्कालीन मुंगेर जिले और वर्तमान बेगूसराय जिले के बीहट गांव में दिसंबर 1915 में हुआ था. उनके पिता दिवंगत रामचरित्र सिंह प्रदेश कांग्रेस के शीर्षस्थ नेता हुआ करते थे. जिन्होंने 1929 में महात्मा गांधी के आह्वान पर कॉलेज की नौकरी त्याग दी थी. रामचरित्र बाबू 1946 से 56 तक बिहार सरकार में सिंचाई और विद्युत मंत्री रहे. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कॉमरेड चंद्रशेखर बचपन से ही संपन्न परिवार से रहे. रामचरित्र बाबू कभी भी चंद्रशेखर के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करते थे. मंत्री रहते हुए रामचरित्र बाबू के कमरे में महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू की तस्वीर होती थी तो कॉमरेड चंद्रशेखर के कमरे में मार्क्स और लेनिन की. 

कॉमरेड चंद्रशेखर की आरंभिक शिक्षा बिहार विद्यापीठ में हुई, जिसे प्रदेश कांग्रेस ने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के तहत खोल रखा था. 1933 में राम मोहन राय सेमिनरी से मैट्रीकुलेशन पास करके कॉमरेड चंद्रशेखर बनारस विश्वविद्यालय में दाखिल हुए. एक साल बाद ही उन्होंने बेगूसराय के नौजवानों के बीच काम करना शुरू कर दिया. इस दौरान कॉमरेड चंद्रशेखर नौजवानों और किसानों को संगठित कर, उन्हें कांग्रेस का सदस्य बनाते थे. आगे चलकर कॉमरेड चंद्रशेखर के प्रभाव से बेगूसराय कांग्रेस में एक उग्रपंथी दल बन गया. यही उग्रपंथी दल आगे चलकर वामपंथी आंदोलन का आधार बने. 

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बनारस विश्वविद्यालय में कॉमरेड चंद्रशेखर कम्युनिस्टों के संपर्क में आए. रुस्तम सैटिन के माध्यम से वह कम्युनिस्ट साहित्य पढ़ने लगे और कॉमरेड रुद्रदत भारद्वाज की गुप्त बैठकों में हिस्सा लेने लगे. कॉमरेड चंद्रशेखर 1936 में बीए पास कर पटना कॉलेज में एमए करने के लिए दाखिल हुए थे. तब तक उनका पूरा झुकाव वामपंथ की तरफ हो चुका था. 

1940-41 में बिहार में कम्युनिस्ट आंदोलन बहुत तेजी से फैला. अक्टूबर 1938 में कॉमरेड भारद्वाज के नेतृत्व में बिहार में कम्युनिस्ट पार्टी की प्रथम यूनिट बनी. साल डेढ़ साल के भीतर छात्र आंदोलन का प्रमुख नेतृत्व कम्युनिस्ट पार्टी ने ले लिया. बिहार प्रदेश छात्र संघ के दरभंगा सम्मेलन में जय प्रकाश नारायण की पराजय पर टिप्पणी करते हुए कलकत्ता के स्टेट्समैन ने एक लेख लिखा था, जिसका शीर्षक था- बिहार में लाल सितारा.. इस लेख में कॉमरेड चंद्रशेखर का लाल सितारा बनाने में योगदान का जिक्र किया गया था. 

1952 से 1956 के साल कम्युनिस्ट पार्टी के पुनर्गठन और जनआंदोलन के साल थे. कॉमरेड चंद्रशेखर पूर्णिया में बेदखली-विरोधी आंदोलन का संचालन कर रहे थे. उन दिनों कॉमरेड चंद्रशेखर के पिता बिहार सरकार में सिंचाई मंत्री थे. कॉमरेड चंद्रशेखर को 1952 में ही कम्युनिस्ट पार्टी ने बेगूसराय क्षेत्र में उम्मीदवार बनाया, लेकिन वह चुनाव हार गए. 1956 में कांग्रेस विधायक की मृत्यु के बाद वहां का चुनाव हुआ, जिसमें कॉमरेड चंद्रशेखर पहली बार विजयी हुए. 

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कम्युनिस्ट के लिए भी यह पहली जीत थी. इसके बाद से लगातार यहां पर लाल झंडा फहराता रहा. बेगूसराय क्षेत्र में कॉमरेड चंद्रशेखर का काफी दिनों तक प्रभाव रहा. कोई भी दल हो उनके विरोध में कोई भी बोलने से बचता था. हालांकि बाद में जो लोग भी कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े वो विचारों और सिद्धांतो से दूर ही रहे. यही वजह है कि बिहार में कॉमरेड चंद्रशेखर जैसा कोई दूसरा सितारा नहीं हुआ और पार्टी भी पूरी तरह से सिमट गई.

 

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